Ad

पूसा बासमती

धान की नई किस्म मचा रहीं धमाल

धान की नई किस्म मचा रहीं धमाल

हरित क्रांति की शुरुआत के दौर से अभी तक हुए अनुसंधानौं के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा दिल्ली ने धान की विश्व में धमाल मचाने वाली 1121, 1509,1637 ,1728 , 1718 के अलावा अनेक किस्में विकसित की हैं। समूचे विश्व में निर्यात होने वाली बासमती की अधिकांश किस्में पूसा संस्थान की देन हैं। 

किसान धान लगाने की तैयारी कर रहे हैं ऐसे में उन्हें यह जानना जरूरी है किस किस्म से उत्पादन अच्छा मिलेगा एवं बाजार में किस किस्म की अच्छी मांग होगी।

पूसा धान की 10 नई किस्में (Top10 New Varieties of Pusa Dhan)

पूसा बासमती 1509

वर्ष 2013 में यह मूर्छित इस किस्म को पंजाब एवं दिल्ली राज्य के बासमती उगाने वाले क्षेत्रों के लिए संस्तुत किया गया लेकिन यह किस्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर राजस्थान तक में अच्छा उत्पादन दे रही है। 

इसकी औसत उपज 50 से 60 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है। इसके पौधे अर्ध बोने एवं गिरने के प्रति प्रतिरोधी है। पकने पर इसके दाने झड़ते नहीं हैं। 

यह पर्ण झुलसा रोग, भूरा धब्बा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है । तीव्र सुगंध, लंबा दाना एवं पकने में गुणवत्ता युक्त होने के कारण इसकी समूचे विश्व में अच्छी मांग है।

पूसा 1612

55 से 62 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देने वाली यह किस्म पंजाब ,हरियाणा ,दिल्ली एवं जम्मू कश्मीर राज्य में सिंचित अवस्था में रोपाई के लिए उपयुक्त है। यह किस्म पूसा सुगंध 5 का विकसित रूप है। 

यह ब्लास्ट बीमारी के प्रति प्रतिरोधी है।पकने में 120 दिन का समय लेती है। इस किस्म में लीफ ब्लास्ट बीमारी के प्रतिरोधक  जीन विद्यमान हैं। पैदावार की दृष्टि से पूसा बासमती 1,  तरावड़ी एवं पूसा बासमती 1121 से अच्छी है। 

पूसा बासमती 6- 1401

पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में सिंचित अवस्था में यह किस्म 50 से 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है । यह मध्यम बोनी किस्म है। यह पकने पर गिरती नहीं है । 

दानों की समानता और पकने की गुणवत्ता के हिसाब से यह किस्म पूसा बासमती 1121 से बहुत अच्छी है। पकने पर दाना एक समान रहता है। सुगंध अच्छी है । 150 से 155 दिन में पकती है। 

उन्नत पूसा बासमती 1 -1460

पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में सिंचित अवस्था मैं यह किस्म 55 से 63 कुंतल तक उपज देती है। 135 से 40 दिन में पक्का तैयार होती है। 

उषा सुगंध 5-25 11

दिल्ली पंजाब हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू कश्मीर राज्य में यह किस्म में 55 से 62 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है। यह  उच्च उपज देने वाली सुगंधित चावल की किस्म उत्तर  भारत में वहु फसली पद्धति के लिए उत्तम है ।

सुगंधित और लंबी देने वाली यह किस्म पकाव में गुणवत्तापूर्ण है। झड़ने के प्रति सहिष्णु है। यह  भूरे धब्बे की प्रतिरोधी, पत्ती लपेटक एवं  ब्लास्ट के प्रति माध्यम प्रतिरोधी है। 125 दिन में तैयार हो जाती है। 

पूसा बासमती 1121

पंजाब हरियाणा पश्चिमी उत्तर प्रदेश उत्तराखंड एवं बासमती धान उगाने वाले सभी क्षेत्रों में सिंचित अवस्था में यह किस्म 40 से 45 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। पकने में 140 से 45 दिन लगते हैं । इसका दाना 8 मिलीमीटर लंबा होता है जो पकने के बाद 20 मिलीमीटर तक लंबा हो जाता है। 

पूसा आर एच-10 संकर धान

पंजाब ,हरियाणा, दिल्ली ,पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में यह किस्म 65 से 70 कुंतल तक उपज देती है। यह बासमती गुण वाली धान की विश्व में प्रथम संकर किस्म है। 

इसका दाना अत्यधिक सुगंधित ,लंबा और पतला है जो पकने पर लंबाई में 2 गुना बढ़ जाता है । यह  110 से 15 दिन का समय लेती है। 

पूसा बासमती 1718

यह किशन पूसा बासमती 1121 को संशोधित कर बनाई गई है। यह 1121 से 15 दिन पहले पक जाती है। लंबाई उतनी ही है लेकिन यह 11 21 किस्म के मुकाबले थोड़ा कम गिरती है। रोग कम आते हैं और उपज 1121 से ज्यादा होती है। 

पूसा बासमती 1728

यह धान की 14 01  किस्म से तैयार संशोधित प्रजाति है। बीएलबी रोग नहीं आता है। उपज भी 32 कुंतल प्रति एकड़ तक आ जाती है। 

पूसा बासमती 1637

इस किस्म से  30 कुंतल प्रति एकड़ तक उत्पादन मिल जाता है। यह भी पूसा की पूर्व में विकसित किस्मों की संशोधित प्रजाति है। मुख्य रूप से पूसा बासमती एक का यह संशोधित वर्जन है और गर्दन तोड़ जैसी बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी है।

पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

हमारे देश में धान की खेती बहुत बड़ी मात्रा में की जाती है। धान की कई प्रकार की किस्में होती हैं जिनमें से एक किस्म PB1886 है। भारतीय किसान धान की इस किस्म की रोपाई 15 जून के पहले कर सकते हैं। 

जो 20 अक्टूबर से 15 नवंबर के बीच पककर तैयार हो जाती है। हमारे देश में कृषि को अधिक उन्नत बनाने के लिए सरकार की तरफ से नए नए बीज विकसित किए जा रहे हैं। 

और फसलों को और अधिक लाभदायक बनाने के लिए कृषि शोध संस्थानों की तरफ से फसलों की नई नई किस्में विकसित की जा रही हैं। यह किस्म न केवल फसलों की पैदावार में वृद्धि करती है। बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि करती हैं।

पूसा बासमती की नई किस्म PB 1886

इसी कड़ी में पूसा ने बासमती चावल की एक नई किस्म विकसित की है, जिसका नाम PB1886 है। बासमती चावल की यह किस्म किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है। 

यह किस्म बासमती पूसा 6 की तरह विकसित की गई है। जिसका फायदा भारत के कुछ राज्यों के किसानों को मिल सकता है। 

ये भी देखें: तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation)

रोग प्रतिरोधी है बासमती की यह नई किस्म :

बासमती की यह नई किस्म रोग प्रतिरोधी बताई जा रही है। बासमती चावल की खेती में कई बार किसानों को बहुत अधिक फायदा होता है तो कई बार उन्हें नुकसान का भी सामना करना पड़ता है।

धान की फसल को झौंका और अंगमारी रोग बहुत अधिक प्रभावित करते हैं। अगर हम झौंका रोग की बात करें इस रोग के कारण धान की फसल के पत्तों में छोटे नीले धब्बे पड़ जाते हैं और यह धब्बे नाव के आकार के हो जाने के साथ पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं। 

इस वजह से किसान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही अंगमारी रोग के कारण धान की फसल की पत्ती ऊपर से मुड़ जाती है, धीरे-धीरे फसल सूखने लगती है और पूरी फसल बर्बाद हो जाती है।

ये भी पढ़े: पूसा बासमती 1692 : कम से कम समय में धान की फसल का उत्पादन 

 उपरोक्त इन दोनों कारणों को देखते हुए पूसा ने इस बार धान की एक नई प्रकार की किस्म विकसित की है कि यह दोनों रोगों से लड़ सके। 

इसके साथ ही पूसा द्वारा यह समझाइश दी गई है कि पूसा की इस किस्म को बोने के बाद कृषक किसी भी प्रकार की कीटनाशक दवाओं का छिड़काव न करें। 

ये भी पढ़े: धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी

इन क्षेत्रों के लिए है धान की यह किस्म लाभदायक :

धान की यह किस्म क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से विकसित की गई है। इसलिए इसका प्रभाव केवल कुछ ही क्षेत्रों में हैं। जहां की जलवायु इस किस्म के हिसाब से अनुकूल नहीं हैं, उस जगह इस किस्म की धान नहीं होती है। 

उषा की तरफ से मिली जानकारी के अनुसार वैज्ञानिक डॉक्टर गोपालकृष्णन ने बासमती PB1886 की किस्म विकसित की है जो कि कुछ ही क्षेत्रों में प्रभावशाली है। 

पूसा के अनुसार यह किस्में हरियाणा और उत्तराखंड की जलवायु के अनुकूल है इसलिए वहां के किसानों के लिए यह किस्म फायदेमंद हो सकती है। 

ये भी पढ़े:  धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 : कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार : किसान होंगे मालामाल 

 इस किस्म के पौधों को 21 दिन के लिए नर्सरी में रखने के बाद रोपा जा सकता है। इसके साथ ही किसान भाई इस फसल को 1 से 15 जून के बीच खेत में रोप सकते हैं। 

जो कि नवंबर महीने तक पक कर तैयार हो जाती है। इसलिए इस फसल की कटाई नवंबर में हीं की जानी चाहिए।

पूसा बासमती 1692 : कम से कम समय में धान की फसल का उत्पादन

पूसा बासमती 1692 : कम से कम समय में धान की फसल का उत्पादन

वर्तमान समय में हमारे देश में चावल की कई प्रकार की किस्में बोई जाती हैं। इन किस्मों में कुछ किस्में किसानों के लिए लाभदायक, कुछ किस्में किसानों के लिए कम लाभदायक और वहीं दूसरी ओर बात की जाए तो कुछ किस्मों से किसानों को नुकसान भी होता है। 

इसी सब को देखते हुए कृषि विभाग द्वारा चावल की एक नई किस्म पूसा 1692 बनाई गई है जो कि पूसा 1509 और पूसा 1121 के बीच की किस्म है। 

धान एक खरीफ की फसल है क्योंकि हम जानते हैं कि खरीफ की फसल बोने का समय नजदीक आ रहा है, ऐसे में किसानों की सबसे ज्यादा नजर बासमती की नई किस्मों में है जो उन्हें अधिक से अधिक लाभ दे सके। जिन किसानों को कम से कम समय में धान की फसल का उत्पादन करना होता है यह फसल उन किसानों के लिए विकसित की गई है।

इस किस्म को पूसा ने जून 2020 में विकसित किया है। आंकड़ों के मुताबिक किसान की आय फसल के दाम बढ़ने से नहीं बल्कि फसल की पैदावार बढ़ने से बढ़ती है। 

इसी सब को देखते हुए पूसा ने धान की यह किस्म पूसा 1692 विकसित की है जिस की पैदावार पूसा की अन्य किस्मों से अधिक बताई जा रही है। ऐसे में यह किस्म किसानों के लिए बहुत अधिक लाभदायक साबित हो सकती है। 

ये भी देखें: तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation)

पूसा बासमती 1692 की खासियत :

पूसा ने इस किस्म की खासियत के बारे में बताया है कि यह किस्म बहुत ही कम समय में तैयार होने वाली किस्म है। इस किस्म की फसल लगभग 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। 

ऐसे में किसान गेहूं बोने के पहले खेत में दूसरी प्रकार की सब्जियां उगाकर और अधिक लाभ पा सकते हैं। इस किस्म की खास बात यह है कि यह पूसा 1509 की तुलना में प्रति एकड़ 5 क्विंटल ज्यादा पैदावार देती है। 

इस किस्म का चावल ज्यादा टूटता नहीं है जिससे 50% चावल खड़ा निकलता है। यह किस में किसानों को 1 एकड़ में 27 क्विंटल तक पैदावार दे सकती है। 

ये भी पढ़े: धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी

पूसा 1692 के उत्पादन क्षेत्र :

देश में इस किस्म की धान का उत्पादन केवल कुछ स्थानों में ही सीमित है जिनमें दिल्ली हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश हैं। क्योंकि वैज्ञानिकों के मुताबिक यहां की जलवायु इस किस्म के लिए उपयुक्त मानी जा रही है। 

हमारा देश बासमती चावल का सबसे ज्यादा उत्पाद ही नहीं बल्कि इसका निर्यात भी सबसे ज्यादा करता है दुनिया के करीब डेढ़ सौ देशों में भारत के यहां से बासमती सप्लाई होता है। 

भारत सालाना करीब 30 हजार करोड़ रुपए के चावल का निर्यात करता है। खास बात यह है कि बासमती चावल की इस किस्म को बोने का टैग अभी कुछ ही राज्यों को मिला है जिनमें हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश,दिल्ली के बाहरी क्षेत्र, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं। 

बासमती चावल की यह किस्म कम अवधि में ज्यादा उपज देने वाली किस्म है जिससे आईसीएआर नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। इसे बोने से लेकर कटने तक में 115 से 120 दिन का समय लगता है। 

ये भी पढ़े: पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा 1692 की पैदावार :

इस किस्म की पैदावार अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग होती है। जैसे मोदीपुरम में पैदावार 74 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बताई जा रही है। इसके अलावा पीबी1692 की औसत पैदावार 52.6 क्विंटल बताई जा रही है। 

पूसा की नई किस्में 3 वर्षों के परीक्षण के दौरान पूसा की अन्य किस्मों की अपेक्षा 18% ज्यादा औसत पैदावार दी है। दिल्ली राज्य में पूसा 1692 ने 6.79% हरियाणा में 21% जबकि उत्तर प्रदेश में 7.5 प्रतिशत ज्यादा पैदावार दी है। जो कि अन्य किस्मों के अपेक्षा काफी अधिक है। 

ये भी पढ़े:धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 : कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार : किसान होंगे मालामाल

पीबी 1692 के प्रमुख गुण :

इस किस्म के बालियों की औसत लंबाई 27 सेंटीमीटर होती है जो पूरी तरह से फैली होती है। इसके 1000 बीजों का भार लगभग 29 ग्राम होता है। इस किस्म की रोग प्रतिरोधी क्षमता अन्य किस्मों की अपेक्षा काफी अधिक है। 

इसकी रोग प्रतिरोधी क्षमता पूसा 1121 की भांति काम करती है लेकिन गर्दन तोड़ बीमारी में यह पूसा 1121 से अधिक सहनशील है। इस किस्म के चावल लगभग 9 मिलीमीटर लंबी और 2 मिलीमीटर चौड़े होते हैं। जबकि पकने के बाद चावल की लंबाई 75 मिली मीटर तक हो जाती है इस प्रकार के चावल की खुशबू काफी अच्छी होती है। 

ये भी पढ़े: धान की कटाई के बाद भंडारण के वैज्ञानिक तरीका 

कम समय की किस्म होने के कारण इस की कटाई जल्दी हो जाती है जिससे खेत में दूसरी फसल बोने का पर्याप्त समय मिल जाता है। इन दूसरी फसलों के माध्यम से किसान और अधिक रुपए कमा सकता है।

पूसा बासमती 1728 : कम सिंचाई और रोगरोधी क्षमता काफी अधिक, जानिए पूरी जानकारी

पूसा बासमती 1728 : कम सिंचाई और रोगरोधी क्षमता काफी अधिक, जानिए पूरी जानकारी

हमारे देश में गेहूं के बाद जिस फसल के उत्पादन सबसे ज्यादा किया जाता है वह है धान। विश्व में सबसे ज्यादा चावल उत्पादन में भारत दूसरे नंबर पर आता है। इसी कारण सरकार धान के उत्पादन पर ज्यादा ध्यान दे रही है। जिस वजह से सरकार धान की नई नई किस्में ला रही है, जिनमें से पूसा बासमती 1728 भी धान की एक किस्म है। इस किस्म की धान में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। किसान इसमें आवश्यकता पड़ने पर समय समय पर सिंचाई कर सकते हैं। इस प्रकार की धान में किसान को उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी के परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। उर्वरक की मात्रा सीमित होनी चाहिए। पूसा द्वारा निर्मित धान की इस किस्म में रोगरोधी क्षमता काफी अधिक है।

ये भी पढ़ें: धा
न की खेती की शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी, जानिए कैसे बढ़ाएं लागत
 

पूसा 1728, पूसा 6 का एक नया वर्जन है लेकिन इस किस्म का उत्पादन पूसा 1401 जैसा ही है। कृपा करके सानु स्पेशल की देखरेख बहुत अच्छे से करें तो वह स्पेशल से दोगुना मुनाफा कमा सकते हैं।

पूसा 1728 की तैयारी :

पूसा द्वारा विकसित यह बासमती चावल किस्म एक अच्छी उपज देने वाली किस्म है। इस किस्म की बुआई 20 मई से लेकर 22 जून के बीच करनी चाहिए। एवं इसके पौधों की रोपाई का समय 15 जून से 5 जुलाई के मध्य होता है।

ये भी पढ़ें:
पूसा बासमती 1692 : कम से कम समय में धान की फसल का उत्पादन 

फसलों में बीमारी लगने पर किसान अनेक प्रकार की जहरीली दवाओं का छिड़काव चावल की फसल पर कार्य था। जिस कारण से हमारे देश का चावल विदेशों से कई बार रिजेक्ट हो जाता था। इसलिए इस किस्म के पौधों में दवाई के छिड़काव की आवश्यकता न के बराबर होती है। किसान को बहुत कम मात्रा में स्प्रे की जरूरत पड़ेगी। एसे में किसानों के पैसे की बचत होगी। इस प्रकार की धान में प्रति एकड़ 4 से 5 किलोग्राम रोपाई और अनुसंधित धान के लिए 1 से 20 किलोग्राम प्रति एकड़ की रोपाई है। इसमें दुख तारों की बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए और दो पौधों की बीच की दूरी का अंतर 15 सेंटीमीटर होना चाहिए।

ये भी पढ़ें:
धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 : कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार : किसान होंगे मालामाल

पूसा 1728 : फसल का बीज उपचार :

किसी भी फसल के बीज की बुवाई से पहले उसके बीच का बीज उपचार करना बहुत जरूरी होता है धान की इस किस्म के बीज के बीज उपचार करने के लिए इसे पहले 10 ग्राम बाविस्टिन और 1 ग्राम स्ट्रैप्टोसाइगिसन का 8 लीटर पानी के घोल में 24 घंटे तक भिगोते हैं। यह घोल 4 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होता है। इससे बीज का अच्छी तरह से बीज उपचार हो जाता है और किसान द्वारा स्वस्थ बीज बोने से फसल की पैदावार भी अधिक होती है।

ये भी पढ़ें:
पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा 1728 में उर्वरक की मात्रा :

फसल में उर्वरक मिलाने से उस फसल की पैदावार में वृद्धि होती है। जैविक उर्वरक की अपेक्षा कीटनाशक उर्वरक से अधिक पैदावार होती है लेकिन कीटनाशक के छिड़काव से फसलें जहरीली हो जाती हैं। धान की फसल में उर्वरक का इस्तेमाल मिट्टी का परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। इसमें उर्वरक का इस्तेमाल रोपाई के 35 से 40 दिन बाद करना चाहिए। इस प्रकार की फसल में औसत उपज पर्याप्त मात्रा में होती है। दोनों की परिपक्व होने पर इस फसल को काट लेते हैं। इसकी औसत उपज 20 से 24 क्विंटल प्रति एकड़ है। धान की इस किस्म से किसान अच्छी उपज प्राप्त करता है और मुनाफा कमाता है।

धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

धान की किस्म पूसा बासमती 1718 : 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार अधिक, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा
धान की एक और किस्म विकसित की गई है जिसका नाम पूसा बासमती 1718 है। धान की इस किस्म से किसानों को अधिक फायदा मिल रहा है। यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले अधिक पैदावार दे रही है और धान की इस किस्में में बीमारियों का खतरा भी कम है। धान की यह किस्म अन्य किस्मों के मुकाबले 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार अधिक देती है। इस किस्म की धान का दाना लंबा और चमकदार है एवं तना मोटा है। इस फसल से आप अच्छी पैदावार प्राप्त करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

ये भी पढ़ें:
धान की खेती की शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी, जानिए कैसे बढ़ाएं लागत
इस किस्म की धान के लिए ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए अपने खेत में ज्यादा पानी नहीं रुकने देना चाहिए और दूसरा पानी खेत की नमीं को देखते हुए देना चाहिए।

पूसा 1718 की तैयारी :

धान की इस किस्म की बुवाई हम 14 मई से 20 जून के बीच में कर सकते हैं अगर किसी कारणवश हम बुवाई करने में विलंब कर देते हैं तो भी हम इस किस्म से अच्छा उत्पादन कमा सकते हैं।

ये भी पढ़ें:
पूसा बासमती 1692 : कम से कम समय में धान की फसल का उत्पादन
इसके साथ ही आप इसकी रोपाई जून के दूसरे सप्ताह से लेकर जुलाई के पहले सप्ताह के बीच में कर सकते हैं। बासमती धान के लिए 4 से 5 किलोग्राम प्रति एकड़ रोपाई की आवश्यकता होती है। इस किस्म की रोपाई में क्यारियों और पौधों के बीच की दूरी पर भी ध्यान रखा जाता है। अगर हम कतार की बात करें तो कतार से कतार के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर इसके अलावा दो पौधों के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर होनी चाहिए। इसमें आप 110 किलोग्राम प्रति एकड़ नाइट्रोजन अर्थात यूरिया डाल सकते हैं। धान लगाने के 30 दिन के अंदर खेत में यूरिया डाल देना चाहिए। इसके साथ ही खेत में ज्यादा पानी ना रुकने दें और खेत की नमी को देखते हुए ही सिंचाई करें। ऐसा करने से पौधों की लंबाई ज्यादा नहीं बढ़ पाती है। जिससे धान के झड़ने की समस्या नहीं होती।

ये भी पढ़ें:
धान की लोकप्रिय किस्म पूसा-1509 : कम समय और कम पानी में अधिक पैदावार : किसान होंगे मालामाल

पूसा 1718 की विशेषताएं

धान की एक किस्म पूसा 1121 का डुप्लीकेट वर्जन है। यह पूसा 1121 की तरह ही बनाई गई है लेकिन इसमें कुछ परिवर्तन किए गए हैं जैसे पूसा 1121 में लगने वाली गर्दन मरोड़ बीमारी पूसा 1718 में नहीं लगती। इसके साथ ही इस किस्म के पौधे की लंबाई कम और मोटाई ज्यादा है। जिससे इसका दाना गिरता नहीं है। पूसा 1121 का दाना हल्का लाल और पूछा 1718 का दाना हल्का पीला होता है। भारत के 7 राज्यों में किसकी खेती की जाती है जिनमें हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, छत्तीसगढ़ आदि प्रमुख हैं। इस फसल में बीमारी ना के बराबर लगती है जिसके कारण इसमें हम कीटनाशकों का उपयोग ना भी करें तो भी कोई समस्या नहीं जाती। इसके साथ ही अगर हम उत्पादन की बात करें तो किस का उत्पादन 20 से 25 कुंटल प्रति एकड़ होता है जो कि किसानों के लिए लाभदायक होता है।

ये भी पढ़ें:
पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत
धान की किस्म पूसा 1718, पूसा 1121 की समस्याओं को देखते बनाई गई है इससे जो समस्याएं पूसा 1121 की उत्पादन में आती थी वह 1718 के उत्पादन में नहीं आती।
खरीफ सीजन में बासमती चावल की इन किस्मों की खेती से होगी अच्छी पैदावार और कमाई

खरीफ सीजन में बासमती चावल की इन किस्मों की खेती से होगी अच्छी पैदावार और कमाई

भारत भर में बासमती धान का उत्पादन किया जाता है। देश के विभिन्न राज्यों में विभिन्न किस्म का बासमती चावल उगाया जाता है। परंतु, कुछ ऐसी भी प्रजातियां हैं, जिनके उत्पादन हेतु हर प्रकार का मौसम और जलवायु उपयुक्त होता है। 

इस बार जून के पहले हफ्ते में मानसून की शुरुआत होगी। इसके उपरांत संपूर्ण भारत में किसान धान की बुवाई करने में लग जाएंगे। दरअसल, किसानों ने धान की नर्सरी को तैयार करना चालू कर दिया है। 

यदि किसान भाई बासमती धान का उत्पादन करने की योजना बना रहे हैं, तो उनके लिए यह अच्छी खबर है। क्योंकि, आगे इस लेख में हम आपको बासमती धान की सदाबहार प्रजतियों के विषय में जानकारी देने वाले हैं। 

इन किस्मों से खेती करने पर रोग लगने का खतरा भी बहुत कम रहता है। साथ ही, काफी बेहतरीन पैदावार भी मिलती है।

बासमती चावल का उत्पादन पूरे देश में किया जाता है

ऐसे तो बासमती चावल की खेती पूरे भारत में की जाती है। लेकिन, भिन्न-भिन्न राज्यों में वहां की मृदा-जलवायु हेतु अनुकूल भिन्न-भिन्न किस्म का बासमती चावल उगाया जा सकता है। 

हालाँकि, कुछ ऐसी भी प्रजातियां मौजूद हैं, जिनका उत्पादन हर प्रकार के मौसम एवं जलवायु में आसानी से किया जा सकता है। इन किस्मों के ऊपर झुलसा रोग का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। 

साथ ही, फसल की लंबाई कम होने की वजह से तेज हवा बहने पर भी यह वृक्ष नहीं गिरते हैं। अब ऐसी हालत में किसानों की कीटनाशकों पर आने वाली लागत में राहत मिलेगी एवं धान में पोष्टिकता भी बनी रहेगी। इसकी वजह से बाजार में समुचित भाव प्राप्त होगा। 

ये भी देखें: धान की किस्म पूसा बासमती 1718, किसान कमा पाएंगे अब ज्यादा मुनाफा

पूसा बासमती-6 (पूसा- 1401):

पूसा बासमती-6 धान की एक सिंचित किस्म है। मतलब कि यह प्रजाति बारिश से ही अपने लिए जल की आवश्यकता को पूरा कर लेती है। यह बासमती की एक बौनी प्रजाति है। 

इसकी फसल की लंबाई परंपरागत बासमती की तुलना में बेहद कम होती है। ऐसी हालत में तीव्र हवा चलने पर भी इसकी फसल खेत में नहीं गिरती है। 

इसकी उत्पादन क्षमता 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है। यदि किसान भाई इसकी खेती करेंगे को उनको काफी ज्यादा उत्पादन प्राप्त हो सकेगा।

उन्नत पूसा बासमती-1 (पूसा-1460):

उन्नत पूसा बासमती-1 भी पूसा बासमती-6 की ही भाँती एक सिंचित बासमती धान की प्रजाति है। इसकी फसल 135 दिन के समयांतराल में ही पककर तैयार हो जाती है। 

इसका अर्थ यह है, कि 135 दिन के उपरांत किसान भाई इसकी कटाई कर सकते हैं। इसमें रोग प्रतिरोध क्षमता काफी ज्यादा पाई जाती है। 

अब ऐसी हालत में इसके ऊपर झुलसा रोग का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यदि पैदावार की बात करें तो, आप एक हेक्टेयर से 50 से 55 क्विंटल धान की पैदावार कर सकते हैं। 

ये भी देखें: पूसा बासमती चावल की रोग प्रतिरोधी नई किस्म PB1886, जानिए इसकी खासियत

पूसा बासमती-1121:

पूसा बासमती- 1121 का उत्पादन आप किसी भी धान की खेती वाले भाग में कर सकते हैं। यह बासमती की एक सुगंधित प्रजाति है। जो कि 145 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। 

इसके चावल का दाना पतला एवं लंबा होता है। खाने में यह बेहद स्वादिष्ट लगती है। इसकी उत्पादन क्षमता 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इसके अलावा यदि किसान भाई चाहें, तो पूसा सुगंध-2, पूसा सुगंध-3 और पूसा सुगंध-5 की भी खेती कर सकते हैं। 

इन किस्मों की खेती करने हेतु पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर का मौसम उपयुक्त है। यह किस्में तकरीबन 120 से 125 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती हैं। साथ ही, एक हेक्टेयर जमीन से 40 से 60 क्विंटल उत्पादन मिल सकता है।